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पूरे भारत में एक मात्र स्थल है राजगीर जहां 33 कोटि देवी-देवताओं को एक माह तक प्रवास के लिए ध्वजारोहण कर किया जाता है आह्वान 



पूरे भारत में एक मात्र स्थल है राजगीर जहां 33 कोटि देवी-देवताओं को एक माह तक प्रवास के लिए ध्वजारोहण कर किया जाता है आह्वान

सिटी स्टार्स    ।     नालंदा/राजगीर

मलमास मेला जिसे पुरुषोत्तम मास मेला भी कहा जाता है। इस मेला में ध्वजारोहण का काफी धार्मिक महत्व है। ध्वजारोहण के साथ 33 कोटि देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है। पूरे भारत में सिर्फ राजगीर ही ऐसा स्थल है जहां पर 33 कोटि देवी-देवताओं को एक माह तक यहां पर प्रवास करने के लिए ध्वजारोहण कर आह्वान किया जाता है। यह जानकारी अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. धीरेन्द्र उपाध्याय ने दी। कहा कि धार्मिक, आध्यात्मिक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक भूमि श्री राजगीर तीर्थ में वेदोचारण कर संत महात्माओं से ध्वजारोहण कर 33 कोटि देवता का आह्वान कर अनादि काल से श्री राजगृह तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा समिति द्वारा किया जा रहा है। ध्वजारोहण के पूर्व ब्रह्मकुंड परिसर के सप्तधारा में तीर्थ पूजन का कार्य होता है। इस पूजन उद्देश्य श्री राजगृह में उपस्थित सभी देवी-देवताओं के प्रति समर्पण, कृतज्ञता, श्रद्धा और प्रकृति प्रदत चीजों के प्रति आभार व्यक्त करना होता है। उसके बाद ब्रह्मकुंड परिसर में अवस्थित यज्ञशाला के समीप ध्वजारोहण स्थल पर वैदिक मंत्रोच्चारण कर 33 कोटि देवी-देवताओं का आह्वान संत महात्माओं और भक्तगणों द्वारा किया जाता है। सनातन परंपरा में ध्वजारोहण को संस्कृति, विजय और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। मान्यता के अनुसार बिना ध्वजा के मंदिर में असुर निवास करते हैं। इसलिए मंदिर में सदैव ध्वजा लगी होनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ध्वजा नवग्रह को धारण किए होती है, जो रक्षा कवच का काम करती है। किसी भी ध्वजा की पहचान उसके रंग और चिह्न से होती है। मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से मनुष्य की संपत्ति की सदा वृद्धि होती है। ध्वजारोहण से मनुष्य इस लोक में सभी प्रकार के ऐश्वर्य, सुख-भोग, निरोगता और यश को प्राप्त कर परम गति को के लिए गमन करता है। संपूर्ण भारत के सनातन धर्म की चार पीठों में से एक द्वारका का पीठ एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां 52 गज की ध्वजा दिन में 3 बार चढ़ाई जाती है।




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