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कृषि के नई तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम करे वैज्ञानिक 



कृषि के नई तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम करे वैज्ञानिक 

नूरसराय। पुतूल सिंह

नालंदा उद्यान महाविद्यालय नूरसराय के परिसर में चल रहे ” जलवायु परिवर्तनीय बागबानी : अनुकूलन और समाधान रणनीतियाँ” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन रविवार को चौथे व पांचवे सत्र के अध्यक्षता आईसीएआर नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (उद्यान) डॉ. एके सिंह ने किया। दूसरे दिन देश के राजस्थान,यूपी,झारखंड,बिहार,उड़ीसा के सात राज्यों के दर्जनों कृषि वैज्ञानिकोंने उपरोक्त विषय पर विभिन्न प्रकार के फसलों की उत्पादन व कर रहे। शोध कार्यों पर प्रस्तुतिकरण दिया।

इस मौके पर बेहतरीन प्रस्तुतिकरण देने वाले शोधकर्मी व वैज्ञानिको को प्रशस्ति पत्र व मेमोंटो देकर सम्मानित किया।
आईसीएआर नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (उद्यान) डॉ. एके सिंह ने कहा कि आज जरूरत है कि बदलते जलवायु परिवर्तन में किसानों को बेहतरीन व वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने के गुर को बताने का। कृषि के नई तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम करें सभी वैज्ञानिक। कृषि के नई तकनीक किसानों के बीच मात्र 30 प्रतिशत ही पहुंच पाती है। जरूरत है इस तीस को बढ़ाकर शत प्रतिशत करने का।

किसान नई तकनीक व वैज्ञानिक विधि से खेती करेंगे तो वे अधिक खुशहाल और समृद्ध होंगे। फसल नहीं है कटाई के उपरांत होने वाली नुकसान को बचाने के लिए तकनीक आप सभी वैज्ञानिक विकसित कर किसानों को बताएं। उन्होंने कम लागत आधारित खेती, संसाधन ,संरक्षण, यंत्रीकरण को भी बढ़ावा देने की भी बात कहा। उन्होंने लोगों को मुख्य आहार के रूप में मशरूम का उपयोग करने को भी कहा। डॉ. एके सिंह ने कहा कि नालंदा के गौरवमयी इतिहास की चर्चा करते हुए शांति व शिक्षा की धरती से उपजे उद्यान का वैश्विक रूप से कृषि में समायोजित करने पर जोर दिया। आईसीएआर नई दिल्ली के पूर्व उपमहानिदेशक (उद्यान) डॉ. एच पी सिंह ने कहा कि यह संगोष्ठी ऐसी संगोष्ठी है जिसमें वैव्यनिक चिंतन और मंथन कर रहे हैं। चिंतन और मंथन से ही ज्ञान रूपी अमृत निकलेगा। जो कि बदलते जलवायु परिवर्तन में लाभप्रद सिद्ध होगी। ज्ञान से बड़ा कोई शक्ति नहीं है। ज्ञान में वृद्धि होगी तो हर कोई समृद्ध होगा।

सीआईएसएच,आईसीएआर लखनऊ के पूर्व निदेशक डॉ. आरके पाठक ने जैविक व पारंपरिक खेती में ब्रह्मांडीय खेती पर जोर दिया। आरएयू पूसा के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दयाराम ने पूरे वर्ष भर गया मशरूम का उत्पादन करके बिहार में मशरूम को बिगत पांच वर्षों में बारह गुना बढ़ाने का बात कहा।मशरूम में सबसे ज्यादा विटामिन डी पाया जाता है। आज हर किसी को विटामिन डी की भी जरूरत है। बीएयू सबौर के उद्यान वैज्ञानिक डॉ. फिजा अहमद ने बायोटेक्नॉलेजी द्वारा फल वृक्षों में उत्कृष्ट परिवर्तन लाकर मौसम के अनुकूल प्रजाति विकसित करने पर जोर दिया।

एआरआई,झारखंड के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने विभिन्न तकनीकों के प्रयोग से जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को कम करने पर जोर दिया। बीएयू सबौर के कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के परिपेक्ष्य में। औद्यानिक फसलिन की विभिन्न प्रभेदों, तकनीको,तथा प्रधानमंत्री सिंचाई योजना व अन्य योजनाओं के उपयोग से इस सेक्टर को नए आयाम तक ले जाने की बात कहा बीएयू सबौर के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आर के सुहाने ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को धन्यवाद ज्ञापन किया। साथ ही उन्होंने कहा कि नालंदा ऐतिहासिक जिला है। यहां के किसान जैविक खेती भी कर रहें है । विविधीकरण में बिहार आगे है। नालंदा के किसान मशरूम उत्पादन में कई उपलब्धियां हासिल किया है। मौके पर कृषि अधिष्ठाता डॉ. रेवती रमन सिंह,शोध निदेशक डॉ. पीके सिंह, अधिष्ठाता परस्नातक डॉ. आरपी शर्मा,महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पंचम कुमार सिंह,कार्यक्रम के आयोजक सचिव डॉ. मनीष दत्त ओझा,डॉ.आर बी वर्मा,डॉ. निखत आजमी,पीआरओ डॉ. बिनोद कुमार,डॉ. सराडार सुनील ,डॉ. सुनीता कुशवाहा,डॉ. दिव्या तिवारी,डॉ. एपी सिंह, डॉ. महेंद्र पाल सहित अन्य मौजूद थे।





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