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देश-दुनिया का इकलौता समाधि जहां चढ़ता है लंगोट, इंदिरा गांधी को सत्ता में वापसी करायी थी बाबा ने?



देश-दुनिया का इकलौता समाधि जहां चढ़ता है लंगोट,इंदिरा गांधी को सत्ता में वापसी करायी थी बाबा ने!

सिटी स्टार्स   ।   नालंदा/बिहार शरीफ

देश दुनिया का एकलौता ऐसी समाधि जहां शासन-प्रशासन की ओर से लंगोट अर्पण किया जाता है। बाबा की ख्याति ऐसी है कि जेपी आंदोलन से सता गवा चुकी इंदिरा गांधी बाबा की समाधि पर आकर मन्नतें मांगी और उन्हें पुनः सत्ता मिली तो दुबारा समाधि पर आकर लंगोट अर्पण कर बाबा से किया गया वादा पूरा किया। नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ में बाबा मणिराम अखाड़ा पर बाबा की समाधि है इस बार हर वर्ष की तरह अषाढ़ गुरू पूर्णिमा यानी 3 जु़लाई से लंगोट मेला की विधिवत शुरूआत होगी। और देश विदेश के श्रद्धालु जुटेंगे।  सात दिनों तक चलने वाले इस वार्षिक लंगोट मेले में पहले श्रद्धालु गाजे-बाजे, हाथी-घोड़े और पराम्परिक हथियार का करतब दिखाते हुए पहुंचते थे लेकिन इस बार रामनवमी जुलूस के दौरान हु़ई हिंसा के बाद यहां की फिजा में अब भी तनाव है प्रशासन ने लंगोट मेला में जुलूस ले जाने पर रोक लगा रखी है। सिमित संख्या में निर्धारित शर्ताे पर श्रद्धालु बाबा मणिराम राम के अखाड़ा पर लंगोट अर्पण कर सकते हैं वार्षिक लंगोट अर्पण मेला को लेकर आज रविवार से 24 घंटे का अखंड कीर्तन अखाड़ा परिसर में शुरू हो गया है। पूरा महौल भक्तिमय है जो देखते ही बनता है अखंड कीर्तन के बाद नारायणी भोज आयोजन किया जाएगा। लंगोट मेला को लेकर मंदिर परिसर में रंग- रोगन और साफ-सफाई का कार्य लगभग पूरा कर लिया गया, अखाड़ा न्यास समिति अपने आय के स्रोत से मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया है। मेला में खेल -तमाशा व आर्कषक झूले लगाये गये हैं लजीज व्यंजन चाट- पकौड़ा और जलेबी की दुकानें सज गयी हैं बताया जाता है कि जब उदंतपुरी (अब बिहारशरीफ) विदेशी आक्राताओं के आतंक झेल रहा था तब बाबा मणिराम अयोध्या से चलकर 1238 ई में सनानत धर्म की रक्षा के लिए यहां आये थे और यही के रह गये। प्रवास के दौरान बिहारशरीफ के दक्षिणी छोर से गुजरने वाली पंचाने नदी के पिस्ता घाट पर बाबा नेअपना कर्म स्थली बनाया और सनातन धर्म का प्रचार करते हुए शांति स्थापित किये। बाबा ने भक्तों को अध्यात्म के साथ-साथ तन -मन को स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक मेहनत गुर सिखाया बाबा के समाधि लेने के बाद भक्तों ने अपने तौर तरीके से बाबा की समाधि पर पूजा अर्चना की शुरूआत की बाद में मन्नते पूरी होने पर सनातन प्रेमी उस वक्त के प्रशासनिक पदाधिकारी उत्पाद निरीक्षक कपिलदेव प्रसाद के प्रयास से 6 जुलाई 1952 अषाढ़ पूर्णिमा के दिन बाबा के समाधि पर लगने वाले लंगोट मेले के तौर तरीके को बदलकर इसका विस्तार किया गया। तब से इस लंगोट मेले की ख्याति देश विदेश में फैल गई। उस समय से जिला प्रशासन की ओर से पहले बाबा के समाधि पर लंगोट अर्पण किया जाता है। उसके बाद विभिन्न प्रशासनिक विभाग व गांव-मुहल्ले की अखाड़ा समितियां बाबा के दर पर आकर लंगोट चढ़ाते हैं। बिहार शरीफ के सूफी संत बाबा मनीराम एवं बाबा मखदूम साहब को लेकर लोगों में अलग-अलग धारणा है लोग बताते हैं कि बाबा मनीराम एवं मखदूम साहब समकालीन थे दोनों में प्रगाढ़ रिश्ते थे अपने अपने क्षेत्र दोनों ने अपनी चमत्कारी शक्तियों से खूब ख्याति बटोरी हालांकि इसका कोई प्रमाणिक एवं सटीक इतिहास नहीं मिलता है इस बार भी जिला प्रशासन लंगोट मेला की पूरी तैयारी का दम भर रही है। लेकिन पुलिस की व्यवस्था के अलावा मेला क्षेत्र में कुछ देखने को नहीं मिल रहा है। अखाड़ा न्यास समिति के अध्यक्ष अमरकांत भारती ने बताया कि बाबा के दरवार में आने वाले सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जेपी आंदोलन के बाद सता गवा चुकी इंदिरा गांधी भी बाबा की समाधि पर आ चुकी है। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडिस, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावे कई बड़ी हस्तिया बाबा के दर पर माथा टेका है वे आगे दुखी मन से बताते है बाबा मणिराम अखाड़ा क्षेत्र उपेक्षा का शिकार है। वर्ष 2018 में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बाबा मणिराम लंगोट मेला एवं बाबा मख्दुम साहब के चिरागा मेला को राजकीय मेला का दर्जा देने की घोषणा की। बाबा मख्दुम साहब के मजार क्षेत्र को विकसित करने के लिए सरकार कई महत्वूपर्ण फैसला लिये लेकिन बाबा मणिराम अखाड़ा क्षेत्र के विकास पर फूटी कौड़ी खर्च नहीं किया है।





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